ईरान-इसराइल जंग: ताजा जानकारी और विश्लेषण

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Iran-Israel war, Latest information and analysis
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17 जून 2025, तेहरान/तेल अवीव – मध्य पूर्व में तनाव अपने चरम पर पहुंच चुका है, क्योंकि ईरान और इसराइल के बीच सैन्य संघर्ष ने वैश्विक समुदाय का ध्यान खींचा है। 13 जून 2025 को इसराइल द्वारा ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर किए गए हवाई हमलों, जिन्हें ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ नाम दिया गया, ने इस क्षेत्र को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया है। जवाब में, ईरान ने ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस थ्री’ के तहत इसराइल पर सैकड़ों बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिससे तेल अवीव और अन्य शहरों में भारी नुकसान हुआ। इस लेख में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि क्यों ईरान को अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है, जबकि इसराइल की आक्रामक नीतियां क्षेत्रीय अस्थिरता का कारण बन रही हैं।

संघर्ष की शुरुआत और पृष्ठभूमि

ईरान और इसराइल के बीच तनाव की जड़ें 1979 की इस्लामिक क्रांति तक जाती हैं, जब ईरान ने इसराइल को इस्लाम का दुश्मन घोषित किया था। इसके बाद से दोनों देशों के बीच प्रॉक्सी युद्ध, साइबर हमले, और छिटपुट सैन्य टकराव होते रहे हैं। 2024 में इसराइल द्वारा दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर बमबारी, जिसमें कई वरिष्ठ ईरानी अधिकारी मारे गए, ने इस तनाव को और बढ़ा दिया। इस हमले को ईरान ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना, क्योंकि यह एक संप्रभु देश के राजनयिक परिसर पर हमला था।

इसराइल का तर्क है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम उसके लिए “अस्तित्व का खतरा” है। इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दावा किया कि ईरान कुछ ही महीनों में परमाणु हथियार बना सकता है। हालांकि, ईरान ने हमेशा जोर दिया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने अभी तक इसराइल के दावों की पुष्टि नहीं की है। इसके बावजूद, इसराइल ने 13 जून 2025 को ईरान के नतांज और फोर्दो परमाणु संयंत्रों, साथ ही सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए, जिसमें कई शीर्ष सैन्य कमांडर और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए।

इसराइल की आक्रामकता: क्षेत्रीय अस्थिरता का कारण

इसराइल के इस हमले को कई विश्लेषकों ने एकतरफा और उकसावेपूर्ण कार्रवाई माना है। इसराइल ने दावा किया कि यह “प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक” थी, लेकिन इसके पीछे कोई ठोस सबूत नहीं पेश किया गया कि ईरान तत्काल हमले की योजना बना रहा था। इसराइल का यह कदम न केवल अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह मध्य पूर्व में पहले से ही अस्थिर स्थिति को और जटिल करता है। इसराइल ने पहले भी लेबनान, सीरिया, और गाजा में सैन्य कार्रवाइयां की हैं, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ा है।

इसराइल के हमलों में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के चीफ हुसैन सलामी और सैन्य प्रमुख मोहम्मद बाघेरी सहित कई शीर्ष अधिकारी मारे गए। ईरान ने दावा किया है कि इसराइल के हमलों में 224 से 406 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर नागरिक थे। यह एक गंभीर मानवीय संकट को दर्शाता है, क्योंकि इसराइल के हमले अंधाधुंध थे और नागरिक क्षेत्रों को भी निशाना बनाया गया। इसराइल की यह नीति, जो क्षेत्रीय देशों पर पहले हमला करने और फिर “आत्मरक्षा” का दावा करने की है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आलोचना का विषय रही है।

इसके विपरीत, ईरान ने हमेशा संयम बरतने की कोशिश की है। 2024 में दमिश्क हमले के बाद भी, ईरान ने सीमित जवाबी कार्रवाई की थी, ताकि पूर्ण युद्ध से बचा जा सके। लेकिन इसराइल की हालिया आक्रामकता ने ईरान को मजबूर किया कि वह अपनी संप्रभुता और नागरिकों की रक्षा के लिए कड़ा जवाब दे।

ईरान का जवाब: ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस थ्री

13 जून 2025 की रात को, ईरान ने इसराइल के ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के जवाब में ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस थ्री’ शुरू किया। इस ऑपरेशन के तहत, ईरान ने तेल अवीव, हाइफा, और बेयर शेवा जैसे इसराइली शहरों पर 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन हमले किए। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने दावा किया कि इसराइल के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया, और इस ऑपरेशन का उद्देश्य इसराइल की आक्रामकता का जवाब देना था।

ईरान के इस जवाब को कई देशों, विशेष रूप से इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान ने समर्थन दिया है। पाकिस्तान ने इसराइल के हमले को “अवैध आक्रामकता” करार देते हुए इसकी निंदा की। ईरान का कहना है कि उसका जवाबी हमला अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आत्मरक्षा का एक हिस्सा था, क्योंकि इसराइल ने पहले उसकी संप्रभुता पर हमला किया। संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 51 किसी भी देश को आत्मरक्षा का अधिकार देता है, और ईरान ने इसी अधिकार का उपयोग किया।

इसराइल की रणनीति और पश्चिमी समर्थन

इसराइल के हमलों के पीछे पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका का अप्रत्यक्ष समर्थन रहा है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि इसराइल के हमले में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन यह सर्वविदित है कि इसराइल को अमेरिका से उन्नत हथियार और खुफिया जानकारी मिलती रही है। अमेरिका ने यह भी कहा कि यदि ईरान इसराइल पर हमला करता है, तो वह इसराइल की रक्षा करेगा। यह दोहरा मापदंड मध्य पूर्व में तनाव को और बढ़ाता है, क्योंकि अमेरिका एक तरफ शांति की बात करता है, लेकिन दूसरी तरफ इसराइल की आक्रामक नीतियों को समर्थन देता है।

इसराइल के हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कितना प्रभावी रहा। IAEA ने अभी तक इसराइल के दावों की पुष्टि नहीं की है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा था। इसके अलावा, इसराइल के हमलों ने क्षेत्रीय स्थिरता को और कमजोर किया है, क्योंकि ईरान ने जवाबी कार्रवाई में स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करने की धमकी दी है, जो वैश्विक तेल आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया

भारत ने इस संघर्ष पर गहरी चिंता व्यक्त की है और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से फोन पर बात की और क्षेत्र में शांति की आवश्यकता पर जोर दिया। भारत के लिए यह संघर्ष इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मध्य पूर्व से तेल आपूर्ति और स्ट्रेट ऑफ होर्मुज की सुरक्षा उसके आर्थिक हितों से जुड़ी है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से शंघाई सहयोग संगठन (SCO), ने इसराइल के हमलों की निंदा की है और इसे क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बताया है। हालांकि, मध्य पूर्व के कई देश इस मुद्दे पर तटस्थ रुख अपनाए हुए हैं, क्योंकि वे इसराइल और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना चाहते हैं।

ईरान का आत्मरक्षा का अधिकार

ईरान को अपनी संप्रभुता और नागरिकों की रक्षा करने का पूरा अधिकार है। इसराइल की आक्रामक नीतियां, जो बिना ठोस सबूत के ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमले करती हैं, न केवल अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हैं, बल्कि मध्य पूर्व में अस्थिरता का प्रमुख कारण भी हैं। ईरान ने बार-बार कहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है, और इसराइल के दावों को IAEA जैसे स्वतंत्र संगठनों द्वारा सत्यापित नहीं किया गया है।

इसराइल के हमलों ने न केवल ईरान के सैन्य और वैज्ञानिक समुदाय को नुकसान पहुंचाया, बल्कि सैकड़ों नागरिकों की जान भी ली। इस तरह की कार्रवाइयां क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा हैं और वैश्विक समुदाय को इसराइल की एकतरफा सैन्य कार्रवाइयों की निंदा करनी चाहिए। ईरान का जवाबी हमला, हालांकि बड़े पैमाने पर था, लेकिन यह उसकी आत्मरक्षा का एक हिस्सा था, जो किसी भी संप्रभु राष्ट्र का अधिकार है।

वैश्विक समुदाय को इस संघर्ष को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। बातचीत और कूटनीति ही इस संकट का समाधान है, न कि सैन्य आक्रामकता। इसराइल को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता बनी रहे।

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