नई दिल्ली, 12 अगस्त 2025: भारतीय निर्वाचन आयोग (EC) की विश्वसनीयता इन दिनों कड़ी परीक्षा से गुजर रही है। देccan हेराल्ड में प्रकाशित एक हालिया लेख में इस बात पर जोर दिया गया है कि EC की प्रतिष्ठा अब केवल कानूनी औपचारिकताओं पर नहीं, बल्कि दृश्यमान जवाबदेही और जनता की नजर में इसकी निष्पक्षता और संवेदनशीलता पर निर्भर करती है।
लेख के अनुसार, EC को अपनी कार्रवाइयों से यह साबित करना होगा कि वह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों की रक्षा कर सकता है, खासकर तब जब विपक्ष और नागरिक समाज लगातार इसके निर्णयों और निष्क्रियता पर सवाल उठा रहे हैं। यह मुद्दा तब और गंभीर हो जाता है जब हाल के महीनों में चुनावी प्रक्रिया और मतदाता सूचियों को लेकर विवाद सामने आए हैं। आइए इस लेख के मुख्य बिंदुओं, इसके संदर्भ, और EC के सामने आने वाली चुनौतियों पर गहराई से नजर डालते हैं।
लेख का मूल संदेश
लेख का तर्क है कि EC की विश्वसनीयता केवल नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करने से नहीं बनती, बल्कि यह जनता के विश्वास पर टिकी है। लेख में कहा गया है कि जब तक EC स्पष्ट और प्रभावी कार्रवाई नहीं करता, तब तक इसके फैसलों पर संदेह बना रहेगा। यह विशेष रूप से तब सच है जब राजनीतिक दलों, विशेषकर विपक्ष ने EC पर पक्षपात और निष्क्रियता के आरोप लगाए हैं।
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उदाहरण के लिए, बिहार में विशेष गहन संशोधन (SIR) और महादेवपुरा में मतदाता सूची वृद्धि जैसे मुद्दों ने EC की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। लेख यह भी सुझाव देता है कि EC को अपनी प्रतिक्रियाओं में पारदर्शिता और तेजी लानी होगी ताकि जनता का भरोसा कायम रहे।
संदर्भ और चुनौतियाँ
हाल के वर्षों में EC की भूमिका पर कई बार सवाल उठे हैं। अप्रैल 2019 में 66 पूर्व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर EC की “स्वतंत्रता, निष्पक्षता, और दक्षता” पर संदेह जताया था, जिसमें पीएम मोदी के ASAT भाषण, नमो टीवी, और मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट उल्लंघन के उदाहरण शामिल थे।
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इसी तरह, जून 2025 में कांग्रेस ने बिहार में SIR को “धोखेबाज और संदिग्ध” करार दिया, जिसमें मतदाताओं के बहिष्कार का खतरा देखा गया। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि EC की कार्रवाइयाँ या निष्क्रियता जनता और विपक्ष के बीच विश्वास का संकट पैदा कर रही हैं।
EC की मौजूदा चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:
- पक्षपात के आरोप: विपक्ष का मानना है कि EC केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग पर कार्रवाई में नाकाम रहा है।
- मतदाता सूची विवाद: महादेवपुरा और बिहार जैसे मामलों में मतदाता वृद्धि या संशोधन ने सवाल खड़े किए हैं।
- पारदर्शिता की कमी: मतदान डेटा और शिकायतों पर त्वरित जवाब की कमी जनता के बीच संदेह बढ़ा रही है।
- मॉडल कोड उल्लंघन: चुनावी भाषणों और मीडिया कवरेज पर EC की ढीली नीति ने विवाद को हवा दी है।
जनता की धारणा और कार्रवाई की जरूरत
लेख में जोर दिया गया है कि EC की प्रतिष्ठा जनता की धारणा पर निर्भर है। जब तक EC मॉडल कोड उल्लंघन, फर्जी मतदाताओं की शिकायतों, और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग पर ठोस कार्रवाई नहीं करता, तब तक उसकी विश्वसनीयता संदेह के घेरे में रहेगी।
उदाहरण के लिए, कोलकाता मामले में EC की देरी ने इसे आलोचनाओं का शिकार बनाया, जबकि फोटोग्राफिक सबूत मिलने पर ही कार्रवाई हुई। यह दर्शाता है कि सक्रियता की बजाय प्रतिक्रियात्मक रुख EC को कमजोर कर रहा है।
भविष्य के लिए रास्ता
EC को अपनी विश्वसनीयता बहाल करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:
- पारदर्शी संवाद: मतदाता सूचियों और शिकायतों पर नियमित अपडेट जारी करें।
- स्वतंत्र जांच: तीसरे पक्ष की निगरानी से चुनावी अनियमितताओं की जांच हो।
- तेज कार्रवाई: मॉडल कोड उल्लंघन पर त्वरित और सख्त फैसले लें।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: मतदान प्रक्रिया में ब्लॉकचेन या डिजिटल सत्यापन जैसे नवाचारों से विश्वास बढ़ाया जा सकता है।
निष्कर्ष
निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता इसकी कार्रवाइयों पर टिकी है। जब तक यह संगठन निष्पक्षता, पारदर्शिता, और जवाबदेही का परिचय नहीं देता, तब तक लोकतंत्र की नींव कमजोर होगी। हाल के विवादों ने EC के सामने एक मौका और चुनौती दोनों रखी है।
अगर यह संगठन ठोस कदम उठाता है, तो यह न केवल अपनी प्रतिष्ठा को बहाल कर सकता है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में भी योगदान दे सकता है।
FAQ
1. EC की विश्वसनीयता पर संदेह क्यों है?
पक्षपात, मतदाता सूची विवाद, और मॉडल कोड उल्लंघन पर निष्क्रियता के कारण।
2. EC को क्या करना चाहिए?
पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए और शिकायतों पर तेज कार्रवाई करनी चाहिए।
3. क्या मतदाता सूची विवाद सही हैं?
महादेवपुरा और बिहार जैसे मामलों में इसकी जांच की मांग उठी है।
4. EC की निष्पक्षता कैसे बहाल होगी?
स्वतंत्र निगरानी और प्रौद्योगिकी के उपयोग से।
5. क्या EC पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है?
नहीं, लेकिन जनता और विपक्ष का दबाव बढ़ सकता है।











