अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 5 अगस्त 2025 को भारत और चीन से रूस से तेल खरीदना बंद करने का आग्रह किया। उनका उद्देश्य रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर यूक्रेन में युद्धविराम के लिए दबाव बनाना है। यूरोपीय संघ (EU) के जनवरी 2023 से रूसी समुद्री तेल के बहिष्कार के बाद, चीन, भारत, और तुर्की रूस के सबसे बड़े तेल खरीदार बन गए।
रूसी तेल की कम कीमत इन देशों के रिफाइनरियों के लिए लाभकारी है, और वे इसे रोकने के कोई संकेत नहीं दिखा रहे। यह लेख रूसी तेल व्यापार और ट्रम्प के दबाव के प्रभावों की जानकारी देता है।
रूसी तेल का नया बाजार
यूरोपीय संघ ने जनवरी 2023 में यूक्रेन युद्ध के कारण रूसी समुद्री तेल का बहिष्कार शुरू किया, जिससे तेल का प्रवाह यूरोप से एशिया की ओर मुड़ गया। तब से, चीन ने 219.5 बिलियन डॉलर के रूसी तेल, गैस, और कोयले की खरीद के साथ पहला स्थान हासिल किया।
भारत 133.4 बिलियन डॉलर के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि तुर्की ने 90.3 बिलियन डॉलर का आयात किया। युद्ध से पहले, भारत रूसी तेल का बहुत कम आयात करता था, लेकिन अब यह उसका दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। यह बदलाव रूसी तेल की सस्ती कीमतों और वैश्विक माँग को दर्शाता है।
भारत की स्थिति
भारत, जो अपनी तेल जरूरतों का 90% आयात करता है, रूस से प्रतिदिन लगभग 20 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदता है। रूसी तेल अब भारत के कुल तेल आयात का 35% हिस्सा है। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि तेल खरीद के निर्णय कीमत, कच्चे तेल की गुणवत्ता, लॉजिस्टिक्स, और आर्थिक कारकों पर आधारित हैं।
उन्होंने तर्क दिया कि रूसी तेल की खरीद ने वैश्विक तेल की कीमतों को 2022 के 137 डॉलर प्रति बैरल के शिखर से नीचे रखने में मदद की। भारत ने ट्रम्प के दबाव को खारिज करते हुए कहा कि वह रूसी तेल खरीदना जारी रखेगा।
ट्रम्प का दबाव और प्रतिबंध
ट्रम्प ने 30 जुलाई 2025 को भारत पर 25% टैरिफ और रूसी तेल खरीद के लिए अतिरिक्त दंड की घोषणा की। उन्होंने 8 अगस्त तक पुतिन को युद्ध रोकने की समय सीमा दी, अन्यथा रूस के व्यापारिक साझेदारों पर और प्रतिबंध लगाने की धमकी दी।
ट्रम्प ने दावा किया कि भारत ने रूसी तेल खरीदना बंद कर दिया है, लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसका खंडन किया। रूसी तेल पर प्रत्यक्ष प्रतिबंध नहीं हैं, और भारत इसे EU के मूल्य सीमा से नीचे खरीदता है। यह स्थिति भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताओं को जटिल बना सकती है।
रूस की आय
रूस ने जून 2025 में तेल बिक्री से 12.6 बिलियन डॉलर कमाए, और पूरे वर्ष के लिए 153 बिलियन डॉलर की आय का अनुमान है। जी-7 देशों ने रूसी तेल पर मूल्य सीमा लगाई, जिसे शिपिंग और बीमा कंपनियों द्वारा लागू किया जाना था। हालांकि, रूस ने “शैडो फ्लीट” नामक पुराने जहाजों और गैर-पश्चिमी बीमा कंपनियों के उपयोग से इस सीमा को बड़े पैमाने पर बायपास कर लिया।
यह तेल रूस के बजट का सबसे बड़ा स्रोत है, जो रूबल को स्थिर करता है और हथियारों सहित आयात को समर्थन देता है। रूस की यह रणनीति ट्रम्प के दबाव को कमजोर करती है।
सस्ते तेल का आकर्षण
रूसी तेल अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट से कम कीमत पर बिकता है, जिससे रिफाइनरियाँ डीजल जैसे उत्पादों पर अधिक लाभ कमा सकती हैं। भारत और चीन जैसे देशों के लिए यह सस्ता तेल उनकी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करता है। भारत ने पहले अमेरिकी दबाव में ईरान और वेनेजुएला से तेल आयात बंद किया था, लेकिन रूसी तेल के मामले में वह दृढ़ है।
भारतीय रिफाइनरियों, जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज, ने वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू की, लेकिन दीर्घकालिक अनुबंध इसे जटिल बनाते हैं। सस्ता तेल इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए रणनीतिक महत्व रखता है।
अन्य खरीदार
तुर्की रूसी तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है, जिसने EU बहिष्कार के बाद इसका आयात बढ़ाया। हंगरी, एक EU सदस्य, पाइपलाइन के माध्यम से रूसी तेल आयात करता है, और इसके राष्ट्रपति विक्टर ओरबान ने प्रतिबंधों की आलोचना की है।
ये देश रूसी तेल की कम कीमतों से लाभ उठाते हैं। रूस ने गैर-पश्चिमी देशों में व्यापारिक नेटवर्क बनाकर प्रतिबंधों को कमजोर किया है। यह वैश्विक तेल बाजार में रूस की स्थिति को मजबूत करता है।
भारत और चीन की चुनौतियाँ
भारत और चीन, जो क्रमशः विश्व की सबसे बड़ी आबादी और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, के लिए तेल आयात राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है। भारत ने 40 देशों से तेल आयात कर स्रोतों में विविधता लाई, लेकिन रूसी तेल की कीमत और उपलब्धता इसे आकर्षक बनाती है।
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में भारत ने ईरानी तेल आयात शून्य कर दिया था, लेकिन इस बार वह रूसी तेल पर दृढ़ है। चीन ने भी रूसी तेल पर अपनी निर्भरता बढ़ाई, और दोनों देश वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में योगदान देते हैं। ट्रम्प का दबाव इन देशों की नीतियों को बदलने में असफल रहा है।
वैश्विक प्रभाव
रूसी तेल का प्रवाह एशिया की ओर बढ़ने से वैश्विक तेल बाजार में स्थिरता आई, क्योंकि भारत और चीन ने OPEC+ उत्पादन कटौती के प्रभाव को कम किया। यदि भारत ने रूसी तेल नहीं खरीदा होता, तो तेल की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो सकती थीं।
ट्रम्प के दबाव के बावजूद, भारत और चीन रूसी तेल खरीदना जारी रखने की संभावना है। रूस की “शैडो फ्लीट” ने प्रतिबंधों को कमजोर किया, जिससे उसकी आय स्थिर रही। यह स्थिति वैश्विक भू-राजनीति और ऊर्जा बाजारों में तनाव को दर्शाती है।