नई दिल्ली, 7 जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है। यह मामला बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (ECI) द्वारा 24 जून 2025 को जारी आदेश से जुड़ा है, जिसे कई विपक्षी नेताओं और संगठनों ने चुनौती दी है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 10 जुलाई 2025 (गुरुवार) को निर्धारित की है। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने तत्काल रोक की मांग की थी, लेकिन जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाला बागची की बेंच ने कहा कि चुनाव अधिसूचित नहीं होने के कारण समयसीमा का कोई विशेष महत्व नहीं है।
SIR क्या है और क्यों है विवाद?
इलेक्शन कमीशन ने 24 जून 2025 को बिहार में SIR शुरू करने का आदेश दिया, जो 2003 के बाद पहली ऐसी प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य मतदाता सूची से अयोग्य नाम हटाना और केवल पात्र नागरिकों को शामिल करना है। इसके लिए 77,895 बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) और 4 लाख वॉलंटियर्स तैनात किए गए हैं, जो 7.96 करोड़ मतदाताओं के रिकॉर्ड्स की जाँच कर रहे हैं।
- प्रक्रिया: घर-घर जाकर सेमी-फिल्ड एन्यूमरेशन फॉर्म्स बाँटे गए हैं। अब तक 6.86 करोड़ फॉर्म्स बाँटे गए और 38 लाख फॉर्म्स वापस लिए गए। अगर 25 जुलाई 2025 तक फॉर्म जमा नहीं होता, तो मतदाता का नाम ड्राफ्ट रोल से हट सकता है।
- दस्तावेज़: मतदाताओं को नागरिकता का प्रमाण देना होगा। 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल न होने वालों को अपने और माता-पिता के दस्तावेज़ देने होंगे। अगर माता-पिता में से कोई विदेशी नागरिक है, तो उनके पासपोर्ट और वीज़ा की कॉपी ज़रूरी है।
विपक्ष और याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ
कई विपक्षी नेता और संगठन, जैसे राष्ट्रीय जनता दल (RJD), तृणमूल कांग्रेस (TMC), एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), पब्लिक यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (PUCL), और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, ने SIR को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी मुख्य आपत्तियाँ हैं:
असंवैधानिक और मनमाना:
- याचिकाकर्ताओं का कहना है कि SIR संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (स्वतंत्रता), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार), 325 (जाति, धर्म, लिंग के आधार पर मतदाता सूची से बहिष्करण नहीं), और 326 (18 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों का मताधिकार) का उल्लंघन करता है।
- RJD सांसद मनोज झा ने इसे “संस्थागत मतदाता बहिष्करण” का हथियार बताया, जो मुस्लिम, दलित, और गरीब प्रवासी समुदायों को निशाना बनाता है।
- TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने इसे “लोकतंत्र के लिए खतरा” करार दिया और दावा किया कि बिहार के बाद पश्चिम बंगाल में भी ऐसी प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
समय और प्रक्रिया पर सवाल:
- SIR का समय बिहार विधानसभा चुनाव (अक्टूबर-नवंबर 2025) से ठीक पहले चुना गया, जो 90-दिन की मॉनसून अवधि में है। यह प्रवासी मज़दूरों और ग्रामीण मतदाताओं के लिए अव्यवहारिक है।
- कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि 8 करोड़ मतदाताओं की जाँच इतने कम समय में असंभव है। अगर फॉर्म जमा नहीं हुआ, तो मतदाता सूची से नाम हट सकता है, जिससे लाखों लोग मतदान से वंचित हो सकते हैं।
दस्तावेज़ की सख्ती:
- शुरुआत में, Aadhaar, MNREGA जॉब कार्ड, और इलेक्शन ID जैसे दस्तावेज़ स्वीकार नहीं किए गए, जिससे ग्रामीण और गरीब मतदाताओं को परेशानी हुई।
- बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बाद में नियमों में ढील दी, जिसके तहत बिना दस्तावेज़ के भी फॉर्म स्वीकार किए जा रहे हैं, लेकिन स्थानीय जाँच पर निर्भरता बनी हुई है।
पक्षपात का आरोप:
- विपक्षी दलों, विशेष रूप से RJD और कांग्रेस, ने आरोप लगाया कि SIR सत्तारूढ़ BJP-NDA के पक्ष में है।
- TMC नेता महुआ मोइत्रा ने दावा किया कि यह प्रक्रिया 1987-2004 के बीच जन्मे युवा मतदाताओं को वोटिंग से रोक सकती है।
- X पर @drshamamohd ने इसे केंद्र सरकार के इशारे पर होने वाला कदम बताया।
इलेक्शन कमीशन का पक्ष
इलेक्शन कमीशन ने SIR को “इन्क्लूजन फर्स्ट” सिद्धांत पर आधारित बताया, जिसका लक्ष्य पात्र मतदाताओं को शामिल करना और अयोग्य नाम हटाना है।
- पहले की प्रक्रिया: बिहार में 2003 में आखिरी बार SIR हुआ था। 2024-25 में हुई स्पेशल समरी रिवीजन (SSR) (अक्टूबर 2024-जनवरी 2025) के बाद भी यह कदम ज़रूरी बताया गया, क्योंकि शहरीकरण, प्रवास, और नए मतदाताओं के कारण सूची में बदलाव की ज़रूरत है।
- पारदर्शिता: ECI का कहना है कि प्रक्रिया पारदर्शी है, जिसमें 1.5 लाख बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
- दस्तावेज़ में ढील: बिहार के CEO ने कहा कि अगर दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं, तो BLOs स्थानीय जाँच के आधार पर फॉर्म्स स्वीकार कर सकते हैं।
- प्रगति: 87% मतदाताओं को फॉर्म्स बाँटे गए हैं, और प्रक्रिया 25 जुलाई तक पूरी होगी। दावे और आपत्तियों के लिए अगस्त तक समय है।
ECI ने यह भी स्पष्ट किया कि SIR के नियमों में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यह प्रक्रिया 24 जून 2025 के निर्देशों के अनुसार चल रही है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने चार याचिकाओं को स्वीकार किया है, जिनमें RJD सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा, ADR, PUCL, और योगेंद्र यादव शामिल हैं।
- 7 जुलाई की सुनवाई: सीनियर एडवोकेट्स कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, सादान फरासत, और गोपाल शंकरनारायण ने तत्काल अंतरिम रोक की मांग की। कोर्ट ने कहा कि वे ECI और केंद्र को नोटिस भेज सकते हैं, और मामले की सुनवाई 10 जुलाई को होगी।
- ECI का जवाब: कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को ECI और केंद्र को याचिकाओं की कॉपी देने को कहा, ताकि वे जवाब दे सकें।
- महत्व: अगर कोर्ट SIR के खिलाफ फैसला देता है, तो यह अन्य राज्यों में भी मतदाता सूची संशोधन पर असर डाल सकता है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
- विपक्ष का विरोध: RJD नेता तेजस्वी यादव ने ECI से मुलाकात कर SIR की समयसीमा और प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि केवल बिहार में ही यह प्रक्रिया क्यों चल रही है।
- महुआ मोइत्रा का दावा: मोइत्रा ने कहा कि बिहार के बाद पश्चिम बंगाल और दिल्ली में भी SIR शुरू हो सकता है, जो BJP के पक्ष में हो सकता है।
- सामाजिक प्रभाव: याचिकाओं में दावा किया गया है कि यह प्रक्रिया मुस्लिम, दलित, SC/ST, और प्रवासी मज़दूरों को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि उनके पास जन्म प्रमाणपत्र या अन्य दस्तावेज़ नहीं होते।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का SIR पर अंतरिम रोक न लगाना और 10 जुलाई को सुनवाई का फैसला बिहार के 7.96 करोड़ मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण है। विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहा है, जबकि ECI इसे साफ और सटीक मतदाता सूची बनाने का प्रयास बताता है। 320MP कैमरे की तरह, यह मामला हर डिटेल को उजागर करता है। गुरुवार की सुनवाई न केवल बिहार, बल्कि देश के अन्य राज्यों के मतदाता संशोधन पर भी असर डाल सकती है। अगर आप एक किफायती और भरोसेमंद कार चाहते हैं, तो मारुति ऑल्टो K10 की तरह, SIR का फैसला भी साधारण लेकिन प्रभावी हो सकता है।